9 फरवरी 2023। देहरादून के गांधी पार्क से लेकर घंटाघर तक भारी भीड़ नजर आ रही थी। देहरादून के इतिहास में पहली बार घंटाघर पूरी तरह से जाम था। ये भीड़ उत्तराखंड के छोटे-छोटे गांव से पढ़ाई के लिए शहर आए स्टूडेंट्स की थी, जो राज्य में एक के बाद एक हो रही भर्ती परीक्षाओं के पेपर लीक का विरोध कर रहे थे। प्रदर्शन चल ही रहा था कि पुलिस ने छात्रों को चारों ओर से घेर लिया। प्रदर्शन में शामिल और गिरफ्तार हुए स्टूडेंट्स में से एक अनिल बताते हैं, ‘शुरू में तो लगा कि व्यवस्था बनाने के लिए पुलिस को तैनात किया गया है। मगर कुछ देर में पुलिसवाले छात्रों को डराने, धमकाने लगे। शाम के करीब साढ़े 5 बजे थे। पुलिस ने अचानक लाठियां बरसानी शुरू कर दीं। 40-45 स्टूडेंट्स को पुलिस की वैन में भरा जाने लगा। पुलिस लड़कों को भेड़-बकरियों की तरह गाड़ियों में भर रही थी। जो लड़के चुपचाप गाड़ियों में बैठ रहे थे उन्हें भी पीछे से लातें मार रहे थे। ऐसा लग रहा था कि पुलिस को किसी तरह का कोई डर ही न हो।’ इसके बाद पुलिस ने ज्यादातर स्टूडेंट्स को तो वॉर्निंग देकर छोड़ दिया, लेकिन प्रदर्शन को लीड कर रहे छात्र नेता बॉबी पंवार और उनके कुछ साथी छात्रों के खिलाफ कई धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया। इन्हें 7 दिन के लिए जेल में बंद कर दिया गया। इन स्टूडेंट्स पर दंगा करने और अटेम्प्ट टू मर्डर यानी हत्या की कोशिश जैसे गंभीर चार्जेज लगाए गए। जेल में बिताए वो सात दिन अनिल को आज भी याद हैं। पहले गांधी पार्क में मारपीट और उसके बाद पुलिस स्टेशन में गालीगलौज। अनिल कहते हैं, ‘आखिर गलती क्या थी हमारी? अब नोट्स बनाने और क्लास जाने की जगह वकीलों के चक्कर काटने पड़ रहे हैं। अब कोई भी सरकारी एग्जाम का फॉर्म भरते हुए NOC (हलफनामा) लगाना पड़ता है कि हम पर लगे आरोप साबित नहीं हुए हैं। मसलन, ये बताना होता है कि हम अपराधी नहीं हैं। परिवार ने हाथ खींच लिए हैं। पहले से ही खराब आर्थिक स्थिति अब और खराब हो गई है। आस-पड़ोस के लोग, रिश्तेदार ताने मारने लगे हैं। कहते हैं कि ऐसी कौन सी पढ़ाई कर रहे थे कि जेल जाना पड़ा।’ पेपर लीक सीरीज की अगली कहानी के लिए हम उत्तराखंड की राजधानी देहरादून पहुंचे। 8 और 9 फरवरी 2023 को उत्तराखंड पटवारी भर्ती पेपर लीक के खिलाफ प्रदर्शन के बाद 7 स्टूडेंट्स को गिरफ्तार किया गया था। हमारी मुलाकात इन्हीं में से 4 स्टूडेंट्स से हुई। ‘हम पर हत्या की कोशिश तक की धाराएं लगा दी गईं’ चेहरे पर हल्की दाढ़ी, सिर पर टोपी और चेहरे पे मुस्कान के साथ 27 साल के शुभम सिंह नेगी कहते हैं, ‘हम सब अलग-अलग एग्जाम की तैयारी कर रहे थे। 7 में से हम 4 ही बचे हैं अब तो। बाकी ने या तो प्राइवेट नौकरी पकड़ ली या तैयारी छोड़ दी। अब हम पर धाराएं लग गईं हैं। धाराएं लगने के बाद सरकारी नौकरी मिलती भी है या नहीं, इस पर भी कभी-कभी मन अड़ जाता है (परेशान हो जाता है)।’ कहते हुए शुभम एक मुस्कान के पीछे अपना दर्द छिपाते हैं। जेल जाने की बात याद करते हुए बताते हैं, ‘7 दिन जेल में रहे तो यही सोचते रहे कि बाहर निकल पाएंगे या नहीं। कहीं प्रोटेस्ट करके गलती तो नहीं कर दी। 7 दिन बाद जेल से तो निकल गए, लेकिन घर-परिवार के लोगों ने ताने मारने शुरू कर दिए। रिश्तेदार कहने लगे कि पढ़ाई लिखाई छोड़कर कहां नेताओं के चक्कर में पड़ गए। आज लगता है कि आंदोलन करना गलत डिसीजन था क्योंकि धाराएं लग गईं, कोर्ट के चक्कर लगाने पड़ते हैं। जेल जाने वाले हम बच्चे पूरी तरह बर्बाद हो गए, जबकि पेपर लीक कराने वाले आराम से घूम रहे हैं।’ शुभम के पिता खेती करते हैं और मां एक टीचर हैं। वो तीन भाई-बहनों में सबसे बड़े हैं। घर से पैसे मांगने की अब हिम्मत नहीं होती, इसलिए खर्च चलाने के लिए होम ट्यूशन देते हैं। वो मुस्कुरा कर कहते हैं, ‘कभी लगता है कि मेहनत कम रह गई जिसकी वजह से कोई पेपर नहीं निकला, कभी ये भी लगता है कि सिस्टम में इतनी गड़बड़ी है कि बेकार ही मेहनत कर रहे हैं, सब कुछ तो सेटिंग से होता है। एग्जाम कंडक्ट करवाकर ये बता दिया जाता है कि आपको एक फेयर चांस मिला है, लेकिन जिसके पास 10-20 लाख हैं सिलेक्शन उसी का होता है। अगर मेरा कहीं सिलेक्शन नहीं हुआ तो कोई प्राइवेट नौकरी कर लूंगा या किसी प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने लगूंगा। वो भी नहीं हुआ तो किसी कोचिंग सेंटर में पढ़ा लूंगा या बच्चों को ट्यूशन दूंगा।’ ‘अंदाजा नहीं था कि विरोध में शामिल होने पर मुकदमा हो जाएगा’ उत्तरकाशी के रहने वाले 26 साल के संदीप चौहान कहते हैं, ‘जिसने कभी कोर्ट-कचहरी का मुंह नहीं देखा था। आज केस हो गया है तो डर लगता है। थाना-कचहरी के चक्कर में पड़कर किताबों से दूरी हो गई है। अब पढ़ाई भी पहले की तरह नहीं हो पा रही है। जब जेल से बाहर आए तो परिवार का पूरा साथ मिला क्योंकि हम अपने अधिकार की लड़ाई लड़ रहे थे। इसमें हमारी नहीं बल्कि सरकार की गलती थी। कभी सोचा नहीं था कि विरोध में शामिल होने पर मुकदमा हो जाएगा।’ अपने भविष्य के बारे में संदीप थोड़ा शायराना अंदाज में बोलते हैं, ‘मंजिल मिले न मिले ये मुकद्दर की बात है, हम कोशिश न करें ये तो गलत बात है। हमारी 5 साल की मेहनत बेकार नहीं जाएगी। अगर पारदर्शिता से एग्जाम होगा तो हम भी सिलेक्ट होंगे और जॉब भी लगेगी।’ ‘घरवालों से 2 साल का समय मांगा था, पेपर लीक से सब बर्बाद हो गया’ चकरौता के रहने वाले मुकेश अपने दोस्त से 30 हजार कर्ज लेकर देहरादून तैयारी करने आए हैं। 30 दिसंबर को उनका SI का एग्जाम है। ये उनका आखिरी अटेम्प्ट है। इसके बाद बड़ी भर्तियों के लिए उनकी उम्र निकल जाएगी। मुकेश 2012 से सरकारी नौकरी की तैयारी में लगे हैं। वो कहते हैं, ‘मेरे घर से पैसे नहीं आते थे, इसलिए कोशिश थी कि पढ़ाई के साथ ही नौकरी मिल जाए। उस समय हर 6 महीने में आर्मी में वैकेंसी निकलती थी। कई बार रिटन एग्जाम निकला, लेकिन फिजिकल नहीं निकल पाया। ग्रेजुएशन के बाद मुझे खुद से अपनी पढ़ाई का खर्चा निकालना था इसलिए पार्ट टाइम जॉब शुरू की। पास के ही विशाल मेगा मार्ट में सेल्समैन की जॉब शुरू की और साथ-साथ में उत्तराखंड पटवारी भर्ती की तैयारी करने लगा, लेकिन जॉब में 7 से 8 घंटे चले जाते थे इसलिए पढ़ाई का टाइम नहीं मिल पाता था। घरवालों से बात करके, किसी तरह से 2 साल का वक्त मांगा था। घरवालों ने पैसे से सपोर्ट भी किया, लेकिन पेपर लीक हो गया। घरवालों को उम्मीद थी कि बच्चा मुश्किल में रहकर मन लगाकर पढ़ाई कर रहा है तो पेपर निकाल ही लेगा, लेकिन पेपर लीक होने से स्टूडेंट के साथ पूरे घर की रीढ़ की हड्डी टूट जाती है। ऊपर से गिरफ्तार होने के बाद लोगों के ताने मिलने शुरू हो गए। किसी ने कहा कि पढ़ने की उम्र में राजनीति करने लगा तो घरवालों ने कह दिया कि अपना केस खुद ही देख लेना। मुझे घरवालों ने वापस बुला लिया, लेकिन मैं उन्हें फिर किसी तरह मनाकर वापस तैयारी करने देहरादून आ गया। हमारे ऊपर बहुत प्रेशर है, एग्जाम की तैयारी करनी है, जिससे कर्जा लिया है उसे चुकाना भी है।’ ‘नोट्स बनाने की बजाय वकील के साथ बयान दर्ज करा रहे हैं’ 28 साल के अनिल एमए करके सरकारी नौकरी की तैयारी में लगे हैं। थोड़ा बेचैन और परेशान भाव से अनिल बताते हैं, ‘जब से आंदोलन में हिस्सा लिया, गिरफ्तारी हुई और केस हुआ, तब से जिंदगी में परेशानियां बढ़ गई हैं। एग्जाम के लिए नोट्स बनाने की जगह हम वकील के साथ बैठकर बयान दर्ज करवा रहे हैं। घरवाले चिंता करते हैं कि पता नहीं कोई सरकारी नौकरी मिलेगी या नहीं। केस होने के बाद से मन बेचैन रहने लगा है, पढ़ाई से भी मन उचट रहा है। पता नहीं इतनी मेहनत का कोई फायदा होगा भी कि नहीं।’ अनिल के पिता किसान हैं जो मुश्किल से घर का खर्च निकालते हैं। ऐसे में अनिल अपने खर्च के लिए शादी, पार्टियों में वेटर का काम करते हैं। अनिल कहते हैं, ‘एक पार्टी में वेटर का काम करके 500 रुपए तक मिल जाते हैं। महीने में 8-10 पार्टी में काम करके खर्च चल जाता है। अब अगर सरकारी नौकरी नहीं मिली तो प्राइवेट में या तो गार्ड की नौकरी मिलेगी, या किसी मॉल में सेल्समैन की नौकरी मिलेगी।’ ‘लगभग हर भर्ती से पहले पर्चा लीक होता है’
फरवरी 2023 में हुए प्रदर्शन को उत्तराखंड बेरोजगार संघ के अध्यक्ष बॉबी पंवार लीड कर रहे थे। बॉबी कहते हैं, ‘जब मैं खुद भर्ती परीक्षा की तैयारी कर रहा था तभी मुझे पता चल गया कि पढ़ने वाले छात्रों का सिलेक्शन नहीं हो रहा है, लेकिन घूस देकर या कमीशन देकर कई लोग पेपर निकाल रहे थे। कई ऐसे लोग थे जिन्हें मैं व्यक्तिगत रूप से जानता था। कुछ ठेकेदार, प्रॉपर्टी डीलर के जानने वालों का सिलेक्शन हुआ था। हमें ये भी पता चला कि लगभग हर भर्ती परीक्षा से पहले उसका पेपर लीक होता है। पेपर लीक करके, कमीशनखोरी करके, OMR भर के या जहां प्रिंटिंग होती है, वहां से पेपर आउट करके बच्चों तक पहुंचाया जाता है। ये एक ऐसा बिजनेस मॉडल तैयार हो गया है जिसमें बिना किसी इन्वेस्टमेंट के करोड़ों की कमाई हो रही है।’ 5 सालों में 5 परीक्षाएं कैंसिल हो चुकी हैं
उत्तराखंड में बीते 5 सालों में परीक्षाओं में धांधली को लेकर 66 से ज्यादा आरोपियों की गिरफ्तारी की जा चुकी है। साल 2015 से अब तक उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग और लोक सेवा आयोग की तरफ से 3,314 पदों के लिए 7 परीक्षाएं कराई गईं हैं। इनमें 2 परीक्षा कांग्रेस तो 5 बीजेपी के शासनकाल में हुईं। इन 7 परीक्षाओं में से 5 परीक्षाएं कैंसिल की जा चुकी हैं। अगले एपिसोड में कहानी उस परिवार की, जिसने एक के बाद एक हो रहे पेपर लीक से हताश अपना जवान बेटा खो दिया। देखिए और पढ़िए शनिवार, 24 अगस्त को। इस सीरीज का पहला पार्ट भी पढ़ें… डिग्रियां जलाकर फंदे से झूल गया बृजेश:7 साल तैयारी की, आखिरी कोशिश में पर्चा लीक; पेपर लीक से तबाह परिवार की कहानी