इंडियन बॉक्सर निशांत देव पेरिस ओलिंपिक में ब्रॉन्ज मेडल पक्का कर चुके हैं। हरियाणा के करनाल में जन्मे 23 साल के निशांत का ओलिंपिक तक का सफर मुश्किल भरा रहा है। 2012 में जब निशांत ने बॉक्सिंग की शुरुआत की तब उनका कंधा टूटा था और रॉड पड़ चुकी थी। निशांत रुके नहीं बॉक्सिंग पर फोकस बनाए रखा। 2021 से उन्हें रिजल्ट मिलने लगा। नेशनल फाइनल खेले और एलीट वर्ल्ड चैंपियनशिप में भी हिस्सा लिया। उनकी बॉक्सिंग ने सभी को प्रभावित किया। लेकिन 2022 में उनकी कंधे की चोट उभर आई। जांच में पता चला कि बोनमैरो इन्फेक्शन है। निशांत पेनकिलर्स खाकर प्रैक्टिस करते थे। ऑपरेशन हुआ और उन्होंने रिहैब में वक्त बिताया, बॉक्सिंग से दूर रहे। 2023 में लौटे और अपना पहला नेशनल चैंपियन बने। पढ़िए निशांत देव की कहानी… शुरुआत निशांत के घर से
निशांत का जन्म 2000 में करनाल में हुआ। बचपन से खेल का माहौल मिला। पिता पवन देव रेसलर थे और मां प्रियंका धावक। लेकिन, निशांत को बॉक्सिंग के लिए उनके चाचा हरीश से प्रेरणा मिली। हरीश डिस्ट्रिक्ट लेवल पर बॉक्सिंग कर चुके हैं। भास्कर ने निशांत के पिता पवन से बात की तो उन्होंने बताया, “घर में बॉक्सिंग का पंचिंग बैग टंगा रहता था। निशांत 6 साल की उम्र से ही उस पर मुक्केबाजी करते थे, लेकिन असली ट्रेनिंग की शुरुआत 12 साल की उम्र में हुई। जिस करनाल स्टेडियम में मां दौड़ने की प्रैक्टिस करती थीं, वहां निशांत बॉक्सिंग के पैंतरे सीखने लगे। निशांत के बड़े भाई सिद्धार्थ बी बॉक्सर हैं। हालांकि निशांत स्कूल में स्केटिंग में भी हाथ आजमा चुके हैं। निशांत के लिए उनकी मां ने नॉनवेज बनाना सीखा।” चोट लगी तो हम चाहते थे निशांत बॉक्सिंग छोड़ दे
पिता कहते हैं, “निशांत 10 साल के थे। पतंग पकड़ने गए और सीढ़ियों से गिर गए। कंधा टूट गया और ऑपरेशन के दौरान तार डाला गया। 2021 में सर्बिया में जब निशांत वर्ल्ड बॉक्सिंग चैंपियन में प्री क्वार्टर फाइनल खेल रहे थे, तब दर्द उभरा। इसके बाद 2022 में कॉमनवेल्थ गेम्स के ट्रायल में दर्द तेज हो गया। सिलेक्शन होने के बावजूद नहीं गए।” अंदर ही अंदर इन्फेक्शन हो गया था। इसके चलते 2022 में भी निशांत का ऑपरेशन हुआ। हम चाहते थे कि वो बॉक्सिंग छोड़ दें। इसमें हाथों का ही खेल है, चोट गंभीर होने का खतरा था।” आत्मविश्वास से भरा हुआ है निशांत
पवन देव कहते हैं, “हमारे मना करने के बावजूद निशांत ने कहा कि बॉक्सिंग में वापसी करेंगे। वो आत्मविश्वास से भरे हुए हैं। सर्जरी के बाद सेंटर गए और वहीं रिहैब किया। मार्च 2022 में ऑपरेशन हुआ था और जनवरी 2023 में नेशनल चैंपियन बने। डॉक्टर कहते थे कि ऑपरेशन के बाद वापसी में 9 महीने लगेंगे, लेकिन निशांत 6 महीने में लौटे और 9वें महीने में चैंपियन बन गए।” बेटे के लिए मां ने नॉनवेज बनाना सीखा
पिता ने कहा, “हमारा पूरा परिवार वेजिटेरियन है। लेकिन हमें यह पता है कि नॉनवेज खाने से प्रोटीन मिलता है। जब निशांत को चोट लगी तो मां ने नॉनवेज बनाना सीखा ताकि प्रोटीन ज्यादा मिले और रिकवरी तेजी से हो सके। ” ट्रेनिंग के लिए करनाल से कर्नाटक आ गए
पिता ने बताया, “निशांत जूनियर और यूथ लेवल तक हरियाणा से खेलते थे। 2016 में यूथ नेशनल में तमिलनाडु के बॉक्सर उन्हें हार मिली। स्कोरिंग के रूल में बदलाव हुआ था। स्कोर ज्यादा होने के बावजूद वे हार गए। दिल्ली में हुई इस चैंपियनशिप में कर्नाटक के विजयनगर के इंस्पायर इंस्टीट्यूट ऑफ बॉक्सिंग में ट्रेनिंग दे रहे रोनाल्ड सिम्स भी आए थे। उन्होंने निशांत से कहा कि हमारे सेंटर में ट्रेनिंग करो। इसके बाद निशांत वहां चले गए। अभी निशांत की ट्रेनिंग ब्रिटिश कोच जॉन के पास चल रही थी।” ओलिंपिक कोटा के लिए भी लड़ाई लड़ी
निशांत ने बताया, “2024 की शुरुआत में निशांत इटली में हुए पहले ओलिंपिक क्वालिफायर में अमेरिका के ओमारी जोंस से हार गए। मेरे साथ बैठकर लंबी चर्चा की। 2 महीने तक ट्रेनिंग में मेहनत की और खामियों पर काम किया। इसके बाद बैंकॉक में वर्ल्ड चैंपियनशिप के क्वार्टरफाइनल में जीत हासिल कर ओलिंपिक का कोटा हासिल किया।” अब आइसक्रीम का दिलचस्प किस्सा
ताशकंद में वर्ल्ड कप चल रहा था। निशांत वहां भारत की ओर से क्वालिफाई कर चुके थे। एक मैच से पहले निशांत होटल जा रहे थे। बाहर आइसक्रीम वाला था और निशांत ने आइसक्रीम खाई। अगले दिन वजन कराने गए तो पता चला कि वजन उनकी वेट कैटेगरी से बाहर चला गया है। मैच में एक दिन बचा था। निशांत वजन कम करने के लिए सारा दिन दौड़ते रहे। वजन को कैटेगरी की सीमा के हिसाब से घटाया और उस चैंपियनशिप में ब्रॉन्ज मेडल जीता।
निशांत को बोनमैरो इन्फेक्शन था, 6 महीने बॉक्सिंग नहीं की:परिवार नहीं चाहता था आगे खेलें, पर लौटे और पहला इंटरनेशनल मेडल जीता
RELATED ARTICLES