Saturday, July 27, 2024
HomeMiscellaneousऐसा समझना सबसे बड़ी गलती कि व्यूअर सबकुछ जानता है:भास्कर से जतिन...

ऐसा समझना सबसे बड़ी गलती कि व्यूअर सबकुछ जानता है:भास्कर से जतिन सप्रू बोले-  रिसर्च जरूरी, MCG में हुआ भारत-पाक मैच नहीं भूलूंगा

स्टार स्पोर्ट्स के ब्रॉडकास्टर जतिन सप्रू का मानना है, यह समझना सबसे बड़ी गलती कि व्यूअर सबकुछ जानता है। उनका कहना है कि कई व्यूअर्स प्रो-क्रिकेट फैन नहीं होते, उन्हें मैच के सभी पहलुओं के बारे में बताना जरूरी है। वहीं,उन्होंने बताया कि मैं अपने ब्रॉडकास्टिंग करियर में MCG में साल 2022 में हुए भात-पाकिस्तान उनका सबसे पसंदीदा मुकाबला है। वे इसे कभी नहीं भूल पाएंगे। टी-20 वर्ल्ड कप 2024 के ऑफिशियल ब्रॉडकास्टर स्टार स्पोर्ट्स ने ड्रीम जॉब कॉन्टेस्ट आयोजित कराया। लगभग आठ सप्ताह तक भाग लेने के बाद, नेशनल पावरलिफ्टिंग एथलीट और रनर सौमी डे सरकार ने स्टार स्पोर्ट्स ‘ड्रीम जॉब’ हासिल की। जतिन 2007 में ‘ड्रीम जॉब’ के विनर थे। दैनिक भास्कर ने ‘ड्रीम जॉब’ कॉन्टेस्ट की विजेता सौमी डे और ब्रॉडकास्टर जतिन सप्रू से बातचीत की…. सौमी डे से हुई भास्कर की बातचीत… 1. आप पहले एथलीट थीं, फिर ब्रॉडकास्टिंग में आईं, तो ये बदलाव कैसे हुआ और एथलीट होने का क्या फायदा मिला?
सौमी- एथलीट के तौर पर आपमें कई लाइफ स्किल्स आती हैं। ये जीवन के हर पड़ाव में इस्तेमाल होती है। स्पोर्ट्स से सीखा की तैयारी जरूरी है। एथलीट बनी तो अनुशासन आया और उसी का फायदा हुआ। 2. कैसा कंटेंट बनाना पसंद करती हैं ?
सौमी- ओवरऑल सफर क्रिएटर के तौर पर शानदार रहा। इस दौरान मैने क्रिकेट और फिटनेस से जुड़ा कंटेंट बनाया। इसके अलावा, मैं एक साइंटिस्ट हूं तो मैने साइंस पर बहुत ज्यादा कंटेंट बनाया है। यहां की बेस्ट बात यह थी कि, जो भी हमे टॉपिक्स मिले , वो काफी दिलचस्प थे। आप हमारे कंटेंट देखेंगे को पता चलेगा कि हमने कंटेंट बनाना कितना एन्जॉय किया है। जर्नी में एक कंटेंट था, जो मुझे पसंद आया। इसमें एक चैंलेंज था, जिसका नाम था ‘अजब फैन’। जहां मैं मुंबई में एक रेस्टॉरेंट गई, वहां पूरा स्टाफ मूकबधीर था। वहां के स्टाफ में एक क्रिकेटर भी थे। उनका क्रिकेट को लेकर पैशन देखने लायक था। मैंने उनके साथ इंटरेक्ट किया और उसके बाद मैंने उनका एक छोटा सा इंटरव्यू भी लिया था। वो जो एक स्पेशल कंटेंट था वो जो काफी अच्छा लगा। 3. ड्रीम जॉब के लिए 2 हजार लोगों ने अप्लाई किया। पूरे प्रोसेस के दौरान सफर कैसा रहा?
सौमी- जर्नी काफी इंटरेस्टिंग थी। मैं कोई भी चीज को लेकर बहुत ज्यादा सीरियस हो जाती हूं। लेकिन मैने इसे एन्जॉय किया। इस दौरान हम सब लोगों ने बहुत चीजे क्रिएट की। हम सब लोग बहुत मजे कर रहे थे। जब फाइनल-10 में मेरा नाम आया तब रियलाइज हुआ के चलो शायद ये मेरे करियर में कहीं पे जा रहा है । हम अहमदाबाद गए, जब IPL का प्लेऑफ शुरू हुआ। वहां हमने बहुत कुछ सीखा। हमें लाइव, फैन के साथ बातचीत करनी थी। उनके पैशन को समझना था। उसे लोगो के सामने लाना था। यह रोमांचक था। जतिन सप्रू से भास्कर की बातचीत…. 1. आज के जमाने में कॉमेंट्री में नॉलेज के साथ-साथ व्यूअर्स को एंगेज करना भी बहुत जरूरी हो जाता है। आप यह कैसे करते हैं?
जतिन- सबसे पहले ईमानदारी होनी जरूरी है। यह समझना सबसे बड़ी गलती होगी कि व्यूअर सबकुछ जानता है। आप मानकर चलिए कि आपको इन्फॉर्म भी करना है। आपको एंटरटेन भी करना है। आपको मैच के जो डायनामिक है, उनका सम्मान करते हुए जो सबसे सही है, वो करना चाहिए। व्यूअर को लगना चाहिए कि ये ब्रॉडकास्ट उसके लिए है। जैसे अगर किसी फैन के दोस्त या फैमिली को क्रिकेट की नॉलेज कम हो, फिर भी उन्हें लगना चाहिए कि थोड़ा कुछ उनके लिए भी है। आप अपने व्यूअर को फॉर ग्रान्टेड नहीं ले सकते हैं। आप ऐसा सोच नहीं सकते ही व्यूअर को हर बात पता ही होगी। उदाहरण के तौर पर जो क्रिकेट का फैन है, उसे पता है कि नो बॉल पर फ्री हिट होती है, लेकिन शायद ऐसी ऑडियंस भी होगी, जिन्हें यह नहीं पता। आपको तैयारी के लिए स्टैट्स, ट्रैंड्स, फैन की पसंद के बारे में रिसर्च करनी होगी। जब आप मैच टीवी पे देखते हैं तो लगता है कि यह बड़ी बात है, फिर आप ग्राउंड पे जाते हैं और आप देखते हैं कि एक क्रिकेट मैच ही तो चल रहा है। टीवी पे 35 कैमरा और शोर-शराबे के बीच में बहुत अलग लगता है। तो आपको बैलेंस बनाना होगा। आपको समझना होगा कि व्यूअर के लिए आप गेम को कैसे रिलेटेबल बना सकते हैं। 2. आप खिलाड़ियों से मिलते हैं। अलग-अलग कॉमेंट्रेटर से मिलते हैं। उनकी रील लाइफ और रियल लाइफ में क्या फर्क होता है?
जतिन- इंटेंट अच्छा है तो कंटेंट अच्छा होगा। हर एक प्लेयर की एक अपनी पर्सनालिटी होती है। जैसे युजवेंद्र चहल, शिखर धवन हो गए, ये सभी फैंस को एंटरटेन करना चाहते हैं। सूर्यकुमार यादव में बॉलीवुड कूट-कूट के भरा है। कुछ खिलाड़ी इन्फोर्मेशन या नॉलेज पर रील बनाते हैं। कैमरा पर सभी प्लेयर्स असहज हो जाते है। इसमें जरूरी है कि उनको कम्फर्टेबल करने के लिए उनके साथ प्रेजेंटर कौन है। किसी का भी ट्रस्ट जीतना एक बड़ी चुनौती है। प्लेयर आपको ट्रस्ट करता है कि आप किसी गलत एजेंडा के साथ नहीं आए हैं। आप उसको नीचा दिखाने की कोशिश नहीं करेंगे। आप उनकी ऑनेस्ट साइड जानने आए है। तो ही वे खुलकर बात करते हैं। 3. खास मैच जैसे भारत-पाकिस्तान के मैचों में एनालिसिस के लिए अलग से क्या रिसर्च करते हैं?
जतिन- टूर्नामेंट से पहले एनालिसिस और पूरा हार्डवर्क पहले ही हो जाता है। टूर्नामेंट से पहले हम सभी रिसर्च कर लेते हैं। सभी टीमों के बारे में सबकुछ जान लेते हैं। वहीं, मैच से पहले ग्राउंड, रणनीति, पिच, पिछले मैचों के स्टैट्स सभी निकाल लेते है। प्लेइंग इलेवन का भी एनालिसिस करते हैं। इन सबके बीच स्टोरी ढूंढना चुनौतीपूर्ण होता है। वो आपके सेंस पर निर्भर करता है। हम हमेशा स्टोरी की डेप्थ में जाना पसंद करते हैं। सही मायनों में कहां-क्या चल रहा है। इमोशनल, प्रेपरेशन, कंडीशंस सभी के साथ बैलेंस बनाकर अपनी स्क्रिप्ट तैयार करते हैं। 4. प्रेजेंटर के तौर पर इमोशंस को कैसे कंट्रोल करते हैं? पिछली बार MCG में हुए भारत-पाकिस्तान टी-20 वर्ल्ड कप मैच में क्या चल रहा था?
जतिन- एक बॉल पर इतने सारे आउटकम शायद ही किसी मैच में आते हैं। रियल टाइम में आपको नहीं पता होता है कि आगे क्या होने वाला है। MCG (मेलबर्न क्रिकेट ग्राउंड) में हुए मुकाबले की बात करें तो वो मैच में कभी नहीं भूल सकता। हम लोग वहां पर थे, ऐसा लग रहा था कि मैच हाथ से निकल गया था, लेकिन हमे अपने इमोशंस को कंट्रोल कर अच्छा खेलने वाली टीम को प्रोत्साहित करना था।​​​​​ मुझे याद है जब मैं कमेंट्री बॉक्स से निकल कर बाहर मैदान की ओर जा रहा था, तब बाहर सुनील गावस्कर सर बैठे थे। हम ब्रॉडकास्ट कर रहे थे। मैं जैसे ही मैदान पर आया, मैने देखा कि विराट कोहली ने हारिस रऊफ को सामने की ओर सिक्स लगा दिया। हम जीतने लगे। कुछ सेकंड समझ ही नहीं आया कि हुआ क्या, और पल में ही इमोशंस बदल गए। मैच के बाद हार्दिक पंड्या और विराट कोहली आए। उनके इमोशंस चरम पर थे। हम सबका थोड़ा-थोड़ा पार्ट हमेशा वहीं के लिए छूट गया। हालांकि वर्ल्ड कप में यह चैलेंजिंग हो जाता है। वहां आप अपने देश को सपोर्ट कर रहे होते हो। 5.आपने अपने करियर की शुरुआत कैसे की, आपका ड्रीम जॉब सलेक्शन इससे कितना अलग था?
जतिन- मैं कोई एथलीट नहीं था। मैं तो अपने आप को फील्ड क्रिकेटर मानता था। क्योंकि मैंने जोनल खेला था। साइंस स्टूडेंट था। इसलिए इंजीनियरिंग करने चला गया। 6 महीनों बाद ही मैंने घरवालों से लड़कर इंजीनियरिंग छोड़ दी और पत्रकारिता करली। मेरा कोई लक्ष्य नहीं था, बल्कि मुझे विज्ञापन और राजनीति की पत्रकारिता में दिलचस्पी थी। फिर ड्रीम जॉब का सलेक्शन शुरू हो गया और एक दोस्त ने मुझे अप्लाई करने को कहा। 5 शहरों में ऑडिशन हुए और मेरे साथ कई सालों के अनुभवी पत्रकार भी बैठे थे। फिर टॉप-18 में सलेक्शन हुआ और फिर होता ही चला गया। मैंने अपना बेस्ट दिया था। इसे बिल्कुल सही नाम दिया गया है, यह वाकई में एक ड्रीम जॉब है। हर सफलता टाइम रहते ही आती है, इसलिए आज के लोगों को भागना नहीं चाहिए जो मिले उसमें बेस्ट दो। आप किसी से भी सीख सकते हो, कैमरा मैन, प्रोड्यूसर भी आपको बहुत कुछ सिखा देते हैं। बस अपनी छोटी-छोटी सफलताओं का लुत्फ उठाते रहो।

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments